रेगिस्तान के रक्षक: रोहिड़ा, हनी ट्री, डेज़र्ट टीक और मारवाड़ टीक
भारत के पश्चिमी क्षेत्र विशेषकर राजस्थान का थार मरुस्थल कठोर जलवायु और संसाधनों की कमी के लिए जाना जाता है। लेकिन इसी कठोरता के बीच कुछ ऐसे वृक्ष हैं जो न केवल इस क्षेत्र की जैव विविधता को समृद्ध करते हैं, बल्कि यहाँ के ग्रामीण जीवन का आधार भी बनते हैं। इनमें प्रमुख हैं – रोहिड़ा, हनी ट्री, डेज़र्ट टीक और मारवाड़ टीक। ये पेड़ पर्यावरण संतुलन बनाए रखने, आर्थिक लाभ देने और पारिस्थितिकी में अहम भूमिका निभाते हैं।

1. रोहिड़ा (Tecomella undulata)
रोहिड़ा जिसे स्थानीय भाषा में ‘रोहेड़ा’ या ‘रोहिड़ा’ कहा जाता है, राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में प्रमुख रूप से पाया जाता है। यह एक बहुउपयोगी वृक्ष है और इसे ‘राजस्थान का राज्य वृक्ष’ भी घोषित किया गया है।
विशेषताएँ:
- यह पेड़ 6-9 मीटर तक ऊँचा होता है।
- इसके फूल सुनहरे पीले होते हैं और वसंत ऋतु में खिलते हैं।
- यह लकड़ी के लिए प्रसिद्ध है। इसकी लकड़ी टिकाऊ, मजबूत और सुंदर होती है, जो फर्नीचर और शिल्प कला में प्रयोग होती है।
पर्यावरणीय भूमिका:
- रोहिड़ा मरुस्थलीय क्षेत्रों में मिट्टी को उड़ने से रोकता है।
- यह कम पानी में भी जीवित रह सकता है, जिससे यह शुष्क क्षेत्रों में जल संरक्षण में सहायक होता है।
सांस्कृतिक महत्व:
- ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी लकड़ी से घरों के खंभे, दरवाजे, खाट और कृषि उपकरण बनाए जाते हैं।
2. हनी ट्री (Honey Tree – Prosopis cineraria / अन्य शहद देने वाले पेड़)
हालांकि “हनी ट्री” शब्द विभिन्न संदर्भों में प्रयोग होता है, राजस्थान में इसे आमतौर पर ‘कीकर’ या ‘शमी’ (Prosopis cineraria) से जोड़ा जाता है। इस पेड़ से मधुमक्खियाँ शहद एकत्र करती हैं, इसलिए इसे हनी ट्री कहा जाता है।
विशेषताएँ:
- यह पेड़ सूखे इलाकों में पनपने में सक्षम है।
- इसके फूल मधुमक्खियों के लिए अमूल्य स्रोत होते हैं।
- इसे आयुर्वेदिक गुणों के लिए भी जाना जाता है।
उपयोग:
- इसकी फलियाँ ‘सांगरी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं, जो राजस्थान की प्रसिद्ध सब्जी ‘पंचकूट’ में प्रयोग होती हैं।
- इसकी लकड़ी ईंधन के रूप में काम आती है और इसकी जड़ें मिट्टी को मजबूत बनाती हैं।
शहद उत्पादन:
- इसके फूलों से तैयार होने वाला शहद स्वास्थ्यवर्धक होता है और ग्रामीण क्षेत्रों में आय का एक स्रोत है।
3. डेज़र्ट टीक (Desert Teak)
डेज़र्ट टीक एक स्थानीय नाम है जिसका उपयोग शुष्क क्षेत्र में पाए जाने वाले टिकाऊ वृक्षों के लिए होता है, जिनकी लकड़ी सागवान जैसी गुणवत्ता वाली होती है। राजस्थान में रोहिड़ा को ही कई बार ‘डेज़र्ट टीक’ भी कहा जाता है।
विशेषताएँ:
- सागवान की तरह मजबूत लकड़ी।
- उच्च तापमान और कम वर्षा में भी जीवित रहना।
- शुष्क क्षेत्रों में वनीकरण और भूमि संरक्षण के लिए उपयुक्त।
आर्थिक लाभ:
- इसकी लकड़ी से तैयार वस्तुएँ महंगे दामों पर बिकती हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में यह रोज़गार का साधन बन चुका है।
पारिस्थितिकी में योगदान:
- डेज़र्ट टीक जैव विविधता को बढ़ावा देता है।
- इसकी छाया और जड़ें अन्य छोटे पौधों को बढ़ने में सहायता करती हैं।
4. मारवाड़ टीक (Marwar Teak)
‘मारवाड़ टीक’ नाम से सामान्यतः रोहिड़ा को ही संदर्भित किया जाता है। लेकिन कुछ स्रोतों में यह नाम राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में पाए जाने वाले अन्य टिकाऊ लकड़ी वाले वृक्षों के लिए भी प्रयोग होता है।
विशेषताएँ:
- मारवाड़ क्षेत्र के अनुकूल विकसित।
- जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील।
- पारंपरिक वास्तुकला और फर्नीचर निर्माण में उपयोगी।
कृषि और वननीति में योगदान:
- खेत की मेड़ पर लगाए जाने वाले पेड़ के रूप में लोकप्रिय।
- कृषि-वनीकरण (Agroforestry) के लिए उपयुक्त।
निष्कर्ष
रोहिड़ा, हनी ट्री, डेज़र्ट टीक और मारवाड़ टीक न केवल पर्यावरण के संरक्षक हैं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और संस्कृति के भी आधार हैं। इन पेड़ों को संरक्षित करना और उनका सतत उपयोग करना भविष्य के लिए जरूरी है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती और मरुस्थलीकरण को रोकने में ये पेड़ महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
हमें चाहिए कि हम इन वृक्षों की जैव विविधता और पारंपरिक ज्ञान को समझें, उन्हें संरक्षित करें और अगली पीढ़ियों के लिए इनका संरक्षण सुनिश्चित करें।
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